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नमाज़ की कुछ शर्ते हैं। जिनका पूरा किये बिना नमाज़ नहीं हो सकती या सही नहीं मानी जा सकती। कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए होना ज़रूरी है, तो कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए पूरा किया जाना ज़रूरी है। तो कुछ शर्तो का नमाज़ पढ़ते वक्त होना ज़रूरी है, नमाज़ की कुल शर्ते कुछ इस तरह से है।
ख़याल रहे की पाक होना और साफ होना दोनों अलग अलग चीज़े है। पाक होना शर्त है, साफ होना शर्त नहीं है। जैसे बदन, कपडा या जमीन नापाक चीजों से भरी हुवी ना हो. धुल मिट्टी की वजह से कहा जा सकता है की साफ़ नहीं है, लेकिन पाक तो बहरहाल है।
– नमाज़ पढने के लिए बदन पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। बदन पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. बदन पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो वजू या गुस्ल कर के नमाज़ पढनी चाहिए।
– नमाज़ पढने के लिए बदन पर पहना हुआ कपडा पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। कपडे पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. कपडे पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो कपडा धो लेना चाहिए या दूसरा कपडा पहन कर नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।
– नमाज़ पढने के लिए जिस जगह पर नमाज पढ़ी जा रही हो वो जगह पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। जगह पर अगर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो जगहधो लेनी चाहिए या दूसरी जगह नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।
– नाफ़ के निचे से लेकर घुटनों तक के हिस्से को मर्द का सतर कहा जाता है। नमाज़ में मर्द का यह हिस्सा अगर दिख जाये तो नमाज़ सही नहीं मानी जा सकती.
– कोई भी नमाज़ पढने के लिए नमाज़ का वक़्त होना ज़रूरी है. वक्त से पहले कोई भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती और वक़्त के बाद पढ़ी गयी नमाज़ कज़ा नमाज़ मानी जाएगी।
– नमाज़ क़िबला रुख होकर पढ़नी चाहिए। मस्जिद में तो इस बारे में फिकर करने की कोई बात नहीं होती, लेकिन अगर कहीं अकेले नमाज़ पढ़ रहे हो तो क़िबले की तरफ मुह करना याद रखे
– नमाज पढ़ते वक़्त नमाज़ पढ़ें का इरादा करना चाहिए।
नमाज़ की नियत का तरीका यह है की बस दिल में नमाज़ पढने का इरादा करे। आपका इरादा ही नमाज़ की नियत है। इस इरादे को खास किसी अल्फाज़ से बयान करना, जबान से पढना ज़रूरी नहीं। नियत के बारे में तफ्सीली जानकारी के लिए इस लिंक पे क्लिक करे।
सुन्नत से साबित नमाज़ की रकाअते है वो यह है।
(1) नमाज़े फ़ज्र : दो सुन्नतें, दो फ़र्ज़। (नमाज़े फज़्र चार रकअतें हुईं)
(2) नमाज़े ज़ोहर : चार सुन्नतें चार फ़र्ज़ दो सुन्नतें। (नमाज़े ज़ोहर दस रकअतें हुई)
(3) नमाज़े अस्र : चार फ़र्ज़।
(4) नमाज़े मगरिब : तीन फ़र्ज़ दो सुन्नतें। (नमाजे मगरिब पांच रकअतें हुई)
(5) नमाज़े इशा : चार फ़र्ज़ और दो सुन्नतें। (नमाज़े इशा छः रकअतें)
नमाज़े वित्र : नमाज़े वित्र दरअस्ल रात की नमाज़ है, जो तहज्जुद के साथ मिलाकर पढ़ी जाती है। जो लोग रात को उठने के आदी न हों वह वित्र भी नमाज़े इशा के साथ ही पढ़ सकते हैं।
रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया : “जिसे ख़तरा हो कि रात के आखिरी हिस्से में नहीं उठ सकेगा वह अव्वल शब ही वित्र पढ़ ले।” [मुस्लिम, हदीस 755]
वजाहत: कोई हज़रात यह ख्याल न करें कि हमने नमाज़ों की रकअतों को कम कर दिया है यानी फ़राइज़ और सुन्नतें गिन ली हैं और नफ़्ल छोड़ दिए हैं। मुसलमान भाइयों को मालूम होना चाहिए कि नवाफ़िल अपनी ख़ुशी और मर्जी की इबादत है।
रसूलुल्लाह सल्ल० ने किसी को पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया, इसलिए हमें कोई हक़ नहीं है कि हम अपने नफ़्लों को फर्ज़ो का ज़रूरी और लाज़मी हिस्सा बना डालें। फर्ज़ो के साथ आपकी नफ़्ल इबादत यानी सुन्नतें आ गई हैं जिनसे नमाज़ पूरी और मुकम्मल हो गई है।
नमाज़ का तरीका बहोत आसान है। नमाज़ या तो २ रक’आत की होती है, या ३, या ४ रक’आत की। एक रक’आत में एक क़याम, एक रुकू और दो सजदे होते है। नमाज़ का तरीका कुछ इस तरह है –
1. नमाज़ के लिए क़िबला रुख होकर नमाज़ के इरादे के साथ अल्लाहु अकबर कहें कर (तकबीर ) हाथ बांध लीजिये।
2. हाथ बाँधने के बाद सना पढ़िए। आपको जो भी सना आता हो वो सना आप पढ़ सकते है। सना के मशहूर अल्फाज़ इस तरह है “सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त’आला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका” (अर्थात: ए अल्लाह मैं तेरी पाकि बयां करता हु और तेरी तारीफ करता हूँ और तेरा नाम बरकतवाला है, बुलंद है तेरी शान और नहीं है माबूद तेरे सिवा कोई।)
3. इसके बाद त’अव्वुज पढ़े। त’अव्वुज के अल्फाज़ यह है “अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम. बिस्मिल्लाही र्रहमानिर रहीम।”
4. इसके बाद सुरे फातिहा पढ़े।
5. सुरे फ़ातिहा के बाद कोई एक सूरा और पढ़े।
6. इसके बाद अल्लाहु अकबर (तकबीर) कह कर रुकू में जायें।
7. रुकू में जाने के बाद अल्लाह की तस्बीह बयान करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। तस्बीह के मशहूर अल्फाज़ यह है, “सुबहान रब्बी अल अज़ीम" (अर्थात: पाक है मेरा रब अज़मत वाला)
8. इसके बाद ‘समीअल्लाहु लिमन हमीदा’ कहते हुवे रुकू से खड़े हो जाये। (अर्थात: अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की, ऐ हमारे रब तेरे ही लिए तमाम तारीफे है।)
9. खड़े होने के बाद ‘रब्बना व लकल हम्द , हम्दन कसीरन मुबारकन फिही’ जरुर कहें।
10. इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे में जायें।
11. सज्दे में फिर से अल्लाह की तस्बीह बयान करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। तस्बीह के मशहूर अल्फाज़ यह है ‘सुबहान रब्बी अल आला' (अर्थात: पाक है मेरा रब बड़ी शान वाला है)
12. इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे से उठकर बैठे।
13. फिर दोबारा अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे में जायें।
14. सज्दे में फिर से अल्लाह की तस्बीह करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। या फिर वही कहें जो आम तौर पर सभी कहते हें, ‘सुबहान रब्बी अल आला’
यह हो गई नमाज़ की एक रक’आत। इसी तरह उठ कर आप दूसरी रक’अत पढ़ सकते हैं। दो रक’आत वाली नमाज़ में सज्दे के बाद तशहुद में बैठिये.
15. तशहुद में बैठ कर सबसे पहले अत्तहिय्यात पढ़िए। अत्तहिय्यात
के अल्लाह के रसूल ने सिखाये हुवे अल्फाज़ यह है,
‘अत्ताहियातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैयिबातू अस्सलामु अलैका
अय्युहन नाबिय्यु रहमतुल्लाही व बरकताहू अस्सलामु अलैना व आला
इबादिल्लाहिस सालिहीन अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहू व अशहदु अन्न
मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलहू’
16. इसके बाद दरूद पढ़े। दरूद के अल्फाज़ यह है,
‘अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा
सल्लैता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम
माजिद. अल्लाहुम्मा बारीक़ अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा
बारकता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम
माजिद’
17. इसके बाद दुआ ए मसुरा पढ़े। मतलब कोई भी ऐसी दुआ जो कुर’आनी सुरों से हट कर हो। वो दुआ कुर’आन में से ना हो। साफ साफ अल्फाज़ में आपको अपने लिए जो चाहिए वो मांग लीजिये। दुआ के अल्फाज़ मगर अरबी ही होने चाहिए।
18. इस तरह से दो रक’अत नमाज़ पढ़ कर आप सलाम फेर सकते हैं। ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’ कहकर आप सीधे और उलटे जानिब सलाम फेरें।